Wednesday, October 15, 2025
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MP मेें कुपोषण की हकीकत! कागजों में सुपोषित बच्चे; कई आदिवासी मासूम कुपोषित; नहीं होता सर्वे, मदद की है आस

मध्य प्रदेश में एक बार फिर कुपोषण अपने पैर पसारने लगा है। खरगोन जिले के झिरन्या विकासखंड में कुपोषित बच्चे मिले हैं। लेकिन यहां सरकारी आंकड़ों में कुपोषण की दर कम है। कुपोषित बच्चों के माता-पिता का कहना है कि उनके यहां न तो आगनवाड़ी से कोई आता है और ना ही जिला प्रशासन या स्वास्थ्य विभाग उनकी खबर लेता है। इधर महिला बाल विकास विभाग का कहना है कि संघन अभियान चलाया जा रहा है जिससे कुपोषण काम हो रहा है। लेकिन अगर कहीं कोई कुपोषित छूट जाता है या कुछ कमी पाई जाती है तो कार्रवाई की जाएगी। कुपोषण की रोकथाम के लिए तमाम प्रयासों और दावों के बावजूद कुपोषित बच्चों की संख्या कम नहीं हो रही है। कुपोषण कम करने के लिए कई योजनाएं भी चलाई जा रही हैं। परंतु आंकड़े और जमीनी हकीकत एक दूसरे से मेल नहीं खातीं। कुपोषित व अति कुपोषित बच्चों की दो श्रेणिया बनाई गई हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से अति कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र में रखकर बेहतर इलाज का दावा किया जा रहा है। वही सरकारी आंकड़ों के अलावा भी ऐसे कई कुपोषित बच्चे हैं जिनका विभाग के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। जहां तक पौष्टिक आहार की बात है वह कुछ बच्चों तक ही पहुंच पाता है और कुछ बच्चे इससे अभी भी वंचित हैं।

अति कुपोषित बच्चों को जिला व ब्लॉक स्तर पर संचालित पोषण पुनर्वास केंद्र में आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से महिला एवं बाल विकास विभाग के द्वारा पहुंचाया जाता है। पिछले दो वर्ष के आंकड़े देखें तो अति कुपोषित बच्चे चिह्नित तो हुए लेकिन पोषण पुनर्वास केंद्रों में कम संख्या में पहुंचे।अधिकतर बच्चें आदिवासी क्षेत्रों के है।

आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में महिला बाल विकास की स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में यह स्थिति बन रही है। झिरन्या विकासखंड के ग्राम पंचायत पखालिया में दो साल के शिवराज का वजन मात्र 5 किलो होने से व कुपोषण का शिकार हो रहा है। जिस कारण वह चल भी नहीं पा रहा है । वहीं पखालिया का ही डेढ़ साल के मयंक के भी यही हाल है।

कोई मदद या इलाज नहीं मिल रहा – बोले परिजन

मयंक भी कुपोषण से ग्रस्त है इसके चलते वह भी उठ-बैठ नहीं सकता है। माता-पिता अपने बीमार बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहते हैं। इन सब के बीच स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी को भी नहीं नकारा जा सकता है। तो वही महिला बाल विकास भी अपने कर्तव्य को केवल कागजो में समेटे हुए नजर आ रहा है। क्षेत्र के कई विकास खंडों में कुपोषित बच्चे की संख्या बढ़ रही है। उनके परिजनों का आरोप है कि उन्हें किसी भी प्रकार की कोई सहायता व इलाज नहीं मिल पा रहा है। शासन व प्रशासन दोनों के द्वारा जनहित योजनाएं तो चलाई जा रही है लेकिन धरातल पर उनको ठीक से संचालन नहीं किया जा रहा है। वही महिला विकास अधिकारी की माने तो जिले में कुपोषण पिछले वर्षों की तुलना में कम हुआ है।

कौन सुनेगा माता-पिता की गुहार?

पखालिया ग्राम के रहने वाले शिवा बताते हैं कि 2 साल का मेरा बच्चा है चलने फिरने में गिर जाता है। लेकिन कोई देखने नहीं आता और ना ही पौष्टिक आहार मिलता है। आंगनवाड़ी कब खुलती कब बंद हो जाती हमें कुछ नहीं मालूम। पखालिया के ही कुपोषित बच्चें शिवराज की मां लंका बताती हैं कि 2 साल का बेटा चल नहीं पाता है। उसका  वजन 5 किलो है। प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज करवाया लेकिन फिर भी बीमार रहता है। उनका कहना है कि जब तक उसका इलाज चलता है तब तक वह ठीक रहता। इलाज़ बंद होने के बाद फिर से बीमार हो जाता है। आंगनवाड़ी से भी किसी तरह की सहायता नहीं मिलती है।

एक अन्य कुपोषित के परिजन रतन बताते हैं कि उसका भाई का लड़का डेढ़ साल का है। ओर बहुत कमजोर रहता है । अमूमन गांव में कई बच्चे और इस तरह से पीड़ित है । हमारे यहां सर्वे भी नहीं हुआ है । इधर महिला बाल विकास अधिकारी रत्ना शर्मा  का कहना है कि कुपोषण को लेकर हम सघन  अभियान चला रहे हैं । कुपोषण को लगातार घटाने की कोशिश की जा रहे हैं । नए बच्चों को हम चिन्हित कर लेते हैं उसे हम अपनी देखभाल में  ले लेते हैं । हमारे जिले में झिरनिया और भगवानपुरा में  कुपोषण के मामले ज्यादा है । हमारे द्वारा सुपरवाइजर से प्रमाण पत्र लिया जाता है कि क्षेत्र में कितने बच्चे कुपोषित है। कुछ कमी पाई जाती है तो कार्रवाई की जाएगी।

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