Tuesday, October 21, 2025
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मोदी जी हम दिल्ली आ गए हैं , सरकार और संसद को कुंभकर्णी नींद से जगाएंगे देशभर के किसान डॉ.संतोष पाटीदार की विशेष रिपोर्ट

इंदौर । संसद के शीतकालीन सत्र में एक बार फिर देश के किसानो के विषय पर सरकार से जवाब मांगे जाएगे। सत्ता और विपक्ष आमने सामने होंगे। संसद  सत्र के साथ सरकार के बजट पेश करने की भी तैयारियां चल रही हैं। यह वक्त किसनों की आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए मुफीद है।इस लिहाज से अगले हफ्ते देशभर से हजारों  किसान दिल्ली पहुंच रहे है  । हमेशा की तरह घोषणाओं में गुम होते सरकारी वादों की तलाश करते करते थके हारे किसान सरकार से अब आमना सामना कर दो टूक जवाब मांगेंगे।  खेती किसानी की मांगो को लेकर कोई सुनवाई नहीं होने से आक्रोशित किसानो ने केन्द्र सरकार को घेरने की तैयारी कर ली हैं। एक ओर  यह आंदोलन जहां भारतीय किसान संघ कर रहा है वहीं दूसरी ओर उत्तर भारत के 33 किसान संगठन भी फिर से दिल्ली में डेरा डालने और सीमाएं सील करने के मुड़ में नजर आ रहे है।
खेती के तीन नए कानूनों के सशर्त रद्द होने  के बाद सरकार द्वारा किए वादों का हिसाब किताब अब तक नहीं देने सै ये किसान संगठन  नाराज हैं ।  किसानो का कहना है सरकार से  हम, हमारा हक मांग रहे है । खबर यह भी है कि हरियाणा और उप्र के गन्ना उत्पादक किसानो का बकाया शक्कर मिलो द्वारा नही दिया गया है।गत वर्ष का करोड़ो रुपए का भुगतान अब तक नहीं होने से हजारों किसान नाराज हैं। सबसे ज्यादा बकाया उप्र में है। हरियाणा की भी ऐसी ही स्थिति है।  इस तरह की खबरे किसानो में आक्रोश पैदा किए हुए हैं।
 भारतीय किसान संघ के नेतृत्व में 19 दिसंबर को लाखो की संख्या में दिल्ली में डेरा डालने जा रहे हैं। किसानो ने बकायदा अपने मोबाइल फोन की कालर ट्यून में ,,,मोदी जी हम दिल्ली आ गए हैं,,,,का गीत बजने लगा हैं। यह बताता है कि किसान बड़ी तैयारी के साथ सरकार को घेरने का मन बना चुके हैं। दिल्ली के रामलीला मैदान में 10 हजार किसानो के ठहरने की व्यवस्था की जा रही हैं। यहा लाखो किसानो  का  प्रर्दशन , धरना और सभा का आयोजन होगा । इसके लिए संघ ने वहां भूमिपूजन किया हैं। भारतीय किसान संघ ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की बजाए  फसल का लाभकारी मूल्य देने का बेहतर फार्मूला पेश करते हुए इसे कानूनी रूप से लागू करने की मांग की है।
 किसान संघ, खेती की उपज का पूर्ण लाभकारी मूल्य मिलने की गारंटी की मांग पर अडिग हैं। दूसरी प्रमुख मांग भूमि अधिग्रहण कानून को सरकारो ने अपनी सुविधानुसार तोड़ मरोड़ कर राज्यो के लिए लचीला बना दिया है। ये प्रावधान खत्म किए जाए। उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण को भी नियंत्रित किया जाए। इस तरह की अन्य प्रमुख मांगो को लेकर किसान मैदान में उतरे हैं।
संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री महेश चौधरी की अगुआई में मप्र से लगभग 50 हजार किसान दिल्ली जा रहे हैं। मालवा प्रांत के संगठन मंत्री अतुल माहेश्वरी ने बताया कि भारतीय किसान संघ की 8-9 अक्टूबर को दिल्ली में हुई अखिल भारतीय प्रबंध समिति की बैठक हुई थी । बैठक में राष्ट्रीय स्तर पर खेती की समस्याओं के समाधान  पर विचार विमर्श किया गया। खेती  के लिए बीज खाद दवाई मजदूरी आदि मंहगे होते जा रहे है इसलिए खेती में उत्पादन लागत यानी खेती का खर्च बढ़ गया है। इस लागत खर्च से नीचे फसल बिकने से किसानों को भारी नुकसान होता है। नतीजे मे किसान कर्ज लेता हे। इन गंभीर समस्याओं को  लेकर किसान संघ की बैठक में चिंतन किया गया । बैठक के बाद तय किया कि राज्यो और केन्द्र सरकार के खिलाफ आंदोलन किया जाए।केंद्र सरकार  को किसानो की समस्याओं के समाधान के लिए कई वर्षों से बार बार  अवगत कराया जा रहा है । जैसा होता है अनुकूल नतीजा नही निकला ।इसलिए सरकारों को जगाने  के लिए किसान गर्जना रैली की घोषणा की गई । महेश चोयूधारी ने बताया कि भारतीय किसान संघ किसानों को खेती में होने वाले खर्च की लागत पर आधारित लाभकारी मूल्य दिलाने को लेकर लगातार आंदोलनरत हे। सन 2013 में दिल्ली में आयोजित किसान अधिकार रैली के बाद देश की राष्ट्रीय पार्टियों ने किसानों को लाभकारी मूल्य देने को लेकर घोषणा पत्र जारी किए थे। संगठन की ओर से 2015 में देश भर के लोकसभा व राज्यसभा के   सांसदों को उनके संसदीय क्षेत्र में ज्ञापन दिए ।  संसद में  खेती किसानी का लाभकारी मूल्य दिलाने की मांग सांसदों के माध्यम से रखने के प्रयास हुए।
श्री माहेश्वरी कहते हैं किसान संघ न्यूनतम समर्थन मूल्य के बजाय फसलों के उत्पादन में होने वाले कुल औसत खर्च की लागत के आधार पर  लाभकारी मूल्य की मांग कर रहा है। क्यों कि न्यूनतम समर्थन मूल्य फसलों की पैदावार की वास्तविक लागत से बहुत दूर है । समग्र कृषि खर्च के लिहाज से न्यूनतम समर्थन मूल्य  किसान के लिए फायदेमंद नहीं हैं।जब कि लाभकारी मूल्य में किसान द्वारा लगाई गई पूंजीगत लागत पर ब्याज, मशीनरी के मूल्यह्रास, किसान के परिश्रम अनुसार मेहनताना शामिल हैं।
इस तरह  फसल उत्पादन के कुल खर्च की लागत की गणना करके उस पर 50 प्रतिशत लाभांश जोड़कर कर लाभकारी मूल्य की गणना है।
 किसान संघ इस मांग को लंबे समय से उठा रहा है। गर्जना रैली के द्वारा  केंद्र सरकार से फिर खेती किसानी की मांगे मंजूर करने की मांग की जाएगी। सरकार से  लाभकारी मूल्य  घोषित किए जाने की मांग प्रमुख  है। श्री माहेश्वरी और
इंदौर महानगर किसान संघ के अध्यक्ष दिलीप मुकाती ने बताया कि हमारी यह भी मांग  हैं कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सुनियोजित ढंग से किए गए किसान विरोधी प्रावधानों को खत्म किया जाए।  इसी तरह  किसान को फसल उत्पादक होने के बावजूद किसानों को जीएसटी का इनपुट क्रेडिट नही मिलता है इसलिए किसान गर्जना रैली में कृषि आदानों पर से जीएसटी खत्म करने की मांग भी कर रहे हैं । खरगोन  क्षेत्र के किसान  संघ के जिला अध्यक्ष सदाशिव पाटीदार और श्याम सिंह पंवार कहते हैं कि बढ़ती महंगाई व मुद्रा स्फीति के अनुसार किसान सम्मान निधि राशि में भी बढ़ोतरी होनी चहिए। विकास के नाम पर कृषि भूमि के अधिग्रहण की मनमानी बंद होनी चाहिए और फसलों को नुकसान कर रहे जंगल के जानवरो के नियंत्रण के लिए वन पर्यावरण संगत नीति बनाने के साथ नुकसान का मुआवजा दे या खेतो की फेंसिंग के लिए अनुदान दिया जाए । फेंसिंग से फसल, नील गाय से लेकर जंगली सुअरो से सुरक्षित हो जायेगी।
दूसरी ओर दिल्ली में भर कोरोना और कड़कड़ाती ठंड में केंद्र सरकार के लागू किए तीन नए कृषि कानूनों को समाप्त कराने के लिए करीब डेढ़ साल आंदोलन करने वाले किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा में भी दिल्ली को फिर से घेरने की हलचल शुरू हो गई हैं। दुनिया भर में इस आंदोलन का हल्ला मचा और तमाम तरह के षडयंत्रों के बावजूद सरकार को कानूनों को वापस लेना पड़ा था।
आंदोलनकारियों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार सहमत होने की मांग रखी थी।
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा तीनों  कृषि कानूनों को  रद्द करने की घोषणा संसद में करने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया था। साथ ही यह भी कहा था कि सरकार ने हमारी मांंगें नहीं मानीं तो फिर आंदोलन शुरू हो सकता है। बीती 1 दिसंबर को मोर्चा ने आंदोलन का एक साल पूरा होने पर अपनी मांगे दोहराई और सरकार पर धोखा देने का आरोप लगाया है।
उधर भारतीय किसान संघ ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की तरह ही लाभकारी मूल्य का बेहतर फार्मूला पेश किया और इसे कानूनी स्वरूप देने की मांग रखी हैं।
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