मध्य प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त ने आपराधिक मामलों में मेडिकल रिपोर्ट को लेकर आदेश जारी किया है। आदेश के अनुसार आपराधिक मामलों में मेडिकल रिपोर्ट को आरटीआई अधिनियम के तहत देना अब मान्य होगा। ये फैसला एक पति-पत्नी के मामले को लेकर सुनाया जिसमें पत्नी ने पति पर दहेज प्रताड़ना और मारपीट कर भ्रूण हत्या का आरोप लगाया था।
दरअसल, राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने आदेश निकाला। उन्होंने कहा कि आमतौर पर किसी व्यक्ति विशेष की मेडिकल रिपोर्ट की जानकारी आरटीआई के तहत व्यक्तिगत होने से उपलब्ध नहीं कराई जाती है। लेकिन अपराधिक प्रकरण में व्यक्तिगत जानकारी होने के आधार पर मेडिकल रिपोर्ट की जानकारी को नहीं रोकना चाहिए।
राहुल सिंह ने कहा कि सामान्य चिकित्सा मामलों के विपरीत, मेडिकल लीगल रिपोर्ट रोगी के कहने पर तैयार नहीं होती हैं। इसकी कानूनी आवश्यकता होने के चलते इसे तैयार किया जाता है। और पूर्व मेडिकल रिकॉर्ड के आधार पर कई पर अपराध थानों में दर्ज किया जाता है। ऐसे में आरटीआई से वास्तविक तथ्यों के सामने आ जाते हैं जिससे न्यायिक व्यवस्था सुनिश्चित होती है।
जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि मेडिकल रिपोर्ट वास्तव में आपराधिक मामलों में कानूनी आवश्यकताएं हैं। यह मरीज के कहने पर तैयार नहीं की जाती हैं, बल्कि किसी व्यक्ति को हुई क्षति को रिकॉर्ड करने के लिए बनाई जाती है। इसका उपयोग अदालतों में चल रहें अपराधिक मामलों मे किया जाता है। इसलिए मेडिकल रिकॉर्ड की जानकारी आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (J) के तहत व्यक्तिगत मानकर देने से मना नहीं किया जा सकता।
बता दें कि ये फैसला बालाघाट जिले के एक प्रकरण में सुनाया है। इस मामले में पति ने अपनी पत्नी की सोनोग्राफी रिपोर्ट मांगी थी। पत्नी ने पति के ऊपर दहेज प्रताड़ना के साथ-साथ मारपीट कर गर्भ में भ्रूण हत्या का आरोप लगाया था। पुलिस ने आरोपी पति को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने सबूत ना होन पर पति को जमानत दे दी थी।
वहीं जमानत पर छूटने के बाद पति ने आरटीआई आवेदन लगाकर सोनोग्राफी रिपोर्ट की जानकारी मांगी। पति का मानना है कि सोनोग्राफी रिपोर्ट के सामने आने से मामले में दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगाम लेकिन मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने व्यक्तिगत जानकारी देने से इनकार कर दिया था।